रत्नत्रय गुण से मण्डित जो कर्म रहित भगवान कहें ।
विश्व रूप को एक समय में अवलोकन कर जान रहे ||
मन- वाच- तन को अक्षत करके पञ्च- प्रभु को करे प्रणाम |
पठन करे जिनवाणी का हरने को अपना अज्ञान ||
अरहंत देव की दिव्य ध्वनि से जो भी निकली है वाणी |
स्यादवाद अनेकांत मयी वह कहलाती है जिनवाणी ||
नय निक्षेप तत्व पदार्थ का इसमें पूर्ण विवेचन है |
भव तरने की बात इसी में संशय लेश न हैं ||