संसार, शरीर, भोगों के प्रति उदासीन होना वैराग्य है। जिस प्रकार दीपक की लौ स्थिर नहीं रहती है, उसी प्रकार मनुष्य के पास भौतिक वस्तुएं स्थिर नहीं रहती। परिवार, बंधू-बांधव, स्त्री-पुरुष, पुत्र, शरीर की सुन्दरता, घर, वाहन आदि सभी कमलपत्र पर जमीं ओस की बूंदों के सामान क्षण भंगुर हैं। पता नहीं कब ये नष्ट हो जायें, एसा ज्ञान होते ही वैराग्य की भावना जागृत हो जाती है। मृत्यु का स्मरण भी वैराग्य वृद्धि में कारण बनता है।