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णमो अरिहंताणं | णमो सिद्धाणं | णमो आयरियाणं | णमो उवज्झायणं | णमो लोए सव्व साहूणं | एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावप्प णासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं |
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साधू की आहार चर्या और केशलोंच

दिगम्बर मुनि खड़े होकर चौबीस घंटे में एक बार अपने ही कर पात्र में आहार लेते है। जिसमे तीन हिस्सा पेय पदार्थ और एक हिस्सा खाद्य पदार्थ। आहार लेते समय पाणिपात्र में जीव जंतु, बाल आदि के आने पर या किसी भी प्रकार की अशुद्धि होने पर बीच में ही आहार का त्याग कर देते है। आहार शुद्धि में मोटे वस्त्र से छाना हा गर्म जल तथा अचित फल सब्जी आदि ही प्रयोग करते है। आटे की मर्यादा वर्षा ऋतु में तीन दिन की, शीत ऋतु में सात दिन की, ग्रीष्म में पांच दिन की। मंदिर में संकल्प ग्रहण करके आहार के लिए निकलते है। संकल्प पूर्ण होने पर ही आहार ग्रहण करते है। आहार और शरीर के प्रति ममत्व भाव हटाने के लिए इन कटर नियमों का पालन करते है। संत जीने के लिए भोजन करते है, न ही भोजन के लिए जीते है। दिगम्बर साधू अपने बालो को कैंची या अन्य भौतिक उपकरणों से नहीं काटते हैं, बल्कि अपने हाथों से केशों को उखाड़ते है। कई लोग कहते है की क्या अपने सर के बालों को हाथों से उखाड़ना शरीर को कष्ट देना नहीं है? श्री महावीर भगवान कहते है की हाथो से बालों को उखाड़ना शरीर को कष्ट देना नहीं, बल्कि शरीर की उत्कृष्ट साधना शक्ति का परिक्षण है। कैंची से या अन्य भौतिक उपकरणों से बाल कटवाने पर दीनवृत्ति का जन्मह ओने लगता है, जबकि दिगम्बर साधू दीन्तारहित अन्तरंग व् बहिरंग परिग्रह से रहित होते है, अगर अपने बालो को किसी भी नाई से कैंची द्वारा कटवाए तो पैसे आदि की आवश्यकता पड़ेगी, उस हेतु दुसरो से धन की याचना करनी पड़ेगी जिससे स्वाभिमान व स्वावलंबन होता है, इन सभ दोषों से बचने के लिए व शरीर से निर्ममता को सूचित करने के लिए दिगम्बर जैन साधू हाथो से ही केशों को दो या तीन या चार माह में उखाड़कर फेक देते है।

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