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णमो अरिहंताणं | णमो सिद्धाणं | णमो आयरियाणं | णमो उवज्झायणं | णमो लोए सव्व साहूणं | एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावप्प णासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं |
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साधू की पिच्छिका और कमण्डलु

दिगम्बर साधू का चिन्ह पिच्छिका कमण्डलु होता है। दिगम्बर साधू अपने पास पिच्छिका, कमण्डलु रखते है। पीछी मोर के पंख की होती है कमण्डलु काष्ठ का या नारियल का होता है। पिच्छिका संयम का उपकरण है। कमण्डलु शुद्धि का उपकरण है। पिच्छिका दिगम्बर मुनियों के पास जीवों की रक्षा के लिए होती है, क्योंकि मोर के पंख इतने मुलायम होते है की उससे सूक्ष्म जीवों की भी रक्षा हो जाती है। इस पिच्छिका के पांच गुण हैं- 1.यह पिच्चिका किसी भी वास्तु को ग्रहण नहीं करती, यहाँ तक की धुल को भी ग्रहण नहीं करती। 2.इसमें सुकुमारता होती है। 3.यह पसीने से मलिन नहीं होती। 4.इसमें हल्कापन होता है। 5.यह मृदु होती है। यह पिच्चिका चौबीस घंटे (हमेशा) मुनिराज अपने साथ में रखते है। कई लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है की दिगम्बर साधू आचरण व् अहिंसा की बात करते है, पर स्वयं मोर को कष्ट देकर उसकी पीछी रखते है, क्या यह उचित है? जिनकी इसी धारणा है, वह यथार्थता से अनभिज्ञे हैं, क्योंकि दिगम्बर साधू अभी भी मोर को कष्ट देकर अपनी पिच्छिका नहीं रखते है, बल्कि कार्तिक मास में मयूर अपने पंखों को स्वतः ही छोड़ देते है। उन्ही पंखों को एकत्रित कर लिया जाता है, तब दिगम्बर जैन साधू की पिच्छिका के लिए प्रयोग किया जाता है। दिगम्बर मुनिराज जल पीने के लिए कमण्डलु नहीं रखते अपितु हाथ-पाँव धोने तथा शौचादि की शुद्धि केलिए उस जल का प्रयोग करते है। वह तो चौबीस घंटे में एक बार श्रावक के घर आहार लेते हैं।

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