जैन जैनियों की बपौती नहीं है। जो भी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करता है, कषायों को जीत लेता है, वह जैन है और जो जिन का अनुयायी है, उसे जैन कहते है। जो न्यायी हो, प्रेमी हो, भद्र हो और अध्यात्म पथ का पथिक हो, वह जैन है। विचारो में अनेकांत, आचरण में अहिंसा और जीवन में अपरिग्रह, यही जैन धर्म का सार है। देव दर्शन, पानी छानकर पीना, रात्री भोजन त्याग, ये जैन धर्मानुयायी के चिन्ह है। मात्र जैन कुल में जन्म लेने वाले जैन नहीं कहलाते है किन्तु धर्म के अनुरूप कर्म करने वाले जैन कहलाते है।