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णमो अरिहंताणं | णमो सिद्धाणं | णमो आयरियाणं | णमो उवज्झायणं | णमो लोए सव्व साहूणं | एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावप्प णासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं |
AAO AADINATH KO JANE | AAO CHANDA PRABHU KO JANE | NAMOKAR KI MAHIMA | AAO MAHAVEER KO JANE
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जैन शब्द का अभिप्राय

जैन जैनियों की बपौती नहीं है। जो भी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करता है, कषायों को जीत लेता है, वह जैन है और जो जिन का अनुयायी है, उसे जैन कहते है। जो न्यायी हो, प्रेमी हो, भद्र हो और अध्यात्म पथ का पथिक हो, वह जैन है। विचारो में अनेकांत, आचरण में अहिंसा और जीवन में अपरिग्रह, यही जैन धर्म का सार है। देव दर्शन, पानी छानकर पीना, रात्री भोजन त्याग, ये जैन धर्मानुयायी के चिन्ह है। मात्र जैन कुल में जन्म लेने वाले जैन नहीं कहलाते है किन्तु धर्म के अनुरूप कर्म करने वाले जैन कहलाते है।

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