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णमो अरिहंताणं | णमो सिद्धाणं | णमो आयरियाणं | णमो उवज्झायणं | णमो लोए सव्व साहूणं | एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावप्प णासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं |
AAO AADINATH KO JANE | AAO CHANDA PRABHU KO JANE | NAMOKAR KI MAHIMA | AAO MAHAVEER KO JANE
दर्शन विधि | वेदी की प्रदक्षिणा | तीर्थंकर और भगवान् का अंतर | नरक | जैन शब्द का अभिप्राय | धर्म और ज्ञान का अंतर | साधू की पिच्छिका और कमण्डलु | साधू की आहार चर्या और केशलोंच | वैराग्य | कर्म

वेदी की प्रदक्षिणा

जिनालय में स्थित वेदी समोशरण के बीच स्थित गंधकुटी तुल्य होती है। गंधकुटी में पूर्वमुख विराजमान होते हुए भी भगवान का मुख दैवी अतिशय के कारण चरों और दिखाई देता है अतः दर्शन करने वाले स्त्री-पुरुष भगवान के चारों ओर परिक्रमा देकर चारों ओर के मुखों के दर्शन करते है। वैसा ही अनुकरण मंदिर में वेदी की प्रदक्षिणा देकर किया जाता है। मन, वचन और काय तीनों योगों की भक्ति प्रकट करने के लिए तीन प्रदक्षिणा दी जाती है।

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