जिनालय में स्थित वेदी समोशरण के बीच स्थित गंधकुटी तुल्य होती है। गंधकुटी में पूर्वमुख विराजमान होते हुए भी भगवान का मुख दैवी अतिशय के कारण चरों और दिखाई देता है अतः दर्शन करने वाले स्त्री-पुरुष भगवान के चारों ओर परिक्रमा देकर चारों ओर के मुखों के दर्शन करते है। वैसा ही अनुकरण मंदिर में वेदी की प्रदक्षिणा देकर किया जाता है। मन, वचन और काय तीनों योगों की भक्ति प्रकट करने के लिए तीन प्रदक्षिणा दी जाती है।