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णमो अरिहंताणं | णमो सिद्धाणं | णमो आयरियाणं | णमो उवज्झायणं | णमो लोए सव्व साहूणं | एसो पंच णमोक्कारो, सव्व पावप्प णासणो मंगलाणं च सव्वेसिं, पडमम हवई मंगलं |
AAO AADINATH KO JANE | AAO CHANDA PRABHU KO JANE | NAMOKAR KI MAHIMA | AAO MAHAVEER KO JANE
दर्शन विधि | वेदी की प्रदक्षिणा | तीर्थंकर और भगवान् का अंतर | नरक | जैन शब्द का अभिप्राय | धर्म और ज्ञान का अंतर | साधू की पिच्छिका और कमण्डलु | साधू की आहार चर्या और केशलोंच | वैराग्य | कर्म

दर्शन विधि

प्रातः काल शौच-मंजनादि क्रियाओं से निवृत्त हो कर शुद्ध ताजे जल से स्नान कर शुद्ध सादे वस्त्र पहन कर जिन मंदिर जी जाना चाहिए। घर से मंदर जी जाते समय प्रासुक लौंग, चावाल आदि द्रव्य जरुर ले जाना चाहिए। रास्ते में कीड़े मकोड़े मल्मूत्रादि से बचते हुए जाना चाहिए जिससे जीवों की रक्षा हो और अपनी पवित्रता बनी रहे। मंदिर जी पहुँच कर पाँव धोने चाहिए और विनयपूर्वक 'ॐ जय जय जय निःसही निःसही निःसह नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु' बोलते हुए श्रीजी की प्रतिमा के सम्मुख खड़े हो कर, श्रीफल की आकृतिरूप में दोनों हाथ जोड़ने चाहिए। महामंत्र, उसका महातम्य एवं मंगलोत्तम शरण पाठ बोलना चाहिए। पश्चात 'अरिहंतसिद्धाचार्योपाध्यायसर्वसाधुभ्यो नमः' अथवा अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु को नमस्कार हो,इसे बोलते हुए अंगूठा भीतर करके बंधी हुई मुट्ठी से क्रमशः बीच में, ऊपर, दाहिनी और, नीचे और बायीं और चावल के पांच पुंज चढ़कर पंचांग (घुटने के बल बैठ कर दो पैर, दो हाथ, सिर - पांच अंग) नमस्कार करना चाहिए अथवा अष्टांग (दो हाथ, दो पैर, छाती, सिर, कमर और पीठ सभी अंगों को झुका कर)नमस्कारकरनाचाहिए।
नमस्कार के बाद अच्छे स्वर में स्पष्ट शुद्ध उच्चारण के साथ संस्कृत भाषा का या हिंदी का स्तोत्र पढ़ते हुए अपनी बायीं और से चल कर धीरे धीरे वेदी के तीन प्रदक्षिणा देनी चाहिए। फिर स्तोत्र पूरा कर लेने के बाद पुनः नमस्कारपूर्वक धोक देनी चाहिए।
दर्शन करते समय अपनी दृष्टि जिन-बिम्ब पर ही रखनी चाहिए की जैसी भगवान् की मूर्ति है वैसी ही शान्ति, वीतरागता मुझ में भी प्रकट हो।
परिक्रमा देते समय यदि कोई स्त्री या पुरुष धोक दे रहा हो तो उसके आगे से नहीं निकलना चाहिए। या तो उसके पीछे से निकलना चाहिए या फिर जब तक वह धोक देकर न उठे तब तक खड़े रहना चाहिए। दर्शन करते समय भी इस तरह खड़े होना या परिक्रमा करनी चाहिए की जिससे दूसरे व्यक्तियों को दर्शन पूजन में बाधा न आये।
दर्शन कर लेने के बाद भगवान् के अभी शेक का गंदोधक (अपनी अँगुलियों को गंदोधक के पास रखे शुद्ध जल में डुबो कर शुद्ध कर लेने पर) लेकर अपने सिर मस्तान नेत्र गर्दन छाती आदि उत्तम अंगों पर लगाना चाहिए और फिर अँगुलियों को शुद्ध जल से धो लेना चाहिए ताकि पवित्र गंदोधक वाली अँगुलियों का स्पर्श किसी अन्य अपवित्र पदार्थ से न हो। भगवान् के अभिषेक का जल गंदोधक या प्रक्षाल जल कहा जाता है।
भगवान् जिनेन्द्र के दर्शन के बाद सरस्वती भवन में जिनवाणी माता के समक्ष 'प्रथमं करणं चरणं द्रव्यम नमः' बोलते हुए पुर्वोत्तक विधि से चावलों के चार पुंज चढ़ाकर नमस्कार करना चाहिए।
दिगंबर साधु या आर्यिका जी आदि के सम्मुख 'सम्यग्दर्शन - सम्यग्ज्ञान - सम्याक्चारित्रेभ्यो नमः' बोलते हुए उसी विधि से तीन पुंज चढ़ाकर नमस्कार करना चाहिए।
श्री मंदिर जी में कोई घरेलु चर्चा, हंसी-मजाक, लड़ाई-झगडा या खाने-पीने की बाते कदापि नहीं करनी चाहिए। दर्शन करने का फल यही है की हमारे भाव पवित्र हो, हमें शान्ति मिले।
दर्शन करने से पाप नष्ट होते हैं, भाव शुद्ध होते है और आत्मबल बढ़ता है।

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